“मालिक न उ अधर्मी भण्डारी को सराहो कि ओ न चतुराई से काम कियो हैं, काहेकि इ दुनिया को लोग अपनो बखत ख लोग हुन को संग रीति-व्यवहारो म ज्योति को लोगो से अधिक चतुर हैं।”
तुम तो अपनो बाप सैतान से आय अऊर अपनो बाप की इच्छा का पुरी करन कि सोचा हैं। उ तो सुरू से ही हत्यारो हैं उ सच्चई पर खड़ो नी रह सका, काहेकि ओमन इमानदारी तो हइच नी हाय। जब उ झुठ बोला हैं, ते अपनो स्वभाव ही से बोला हैं; काहेकि उ झूठो हैं अऊर झूठ को बाप हैं।
अदि परमेस्वर न दुनिया ख मुर्ख हुन ख चुन लियो हैं कि ग्यान हुन ख लज्जित करे, अऊर परमेस्वर न दुनिया को कमजोर हुन ख छाट लियो हैं कि सक्तिसाली हुन ख लज्जित करे;
पर दुनिया को अदमी हुन परमेस्वर कि आत्मा कि बात हुन मान नी करिये, काहेकि वी ओकी देखना म बेकार कि बात हैं, अर नी उ उन ख जान सक हैं काहेकि ओकी परख आत्मिक रीति से होए हैं।
काहेकि हम अपनो विवेक की या गवाई पर घमंड करह हैं, कि संसार म अऊर जरूर कर ख तुम्हारो बीच, हमारो चरिस्र परमेस्वर को योग्य असी सुध्दता अऊर सच्चाई सहित थो, जे सारीरिक ग्यान से नी पर परमेस्वर कि दया को संग थो।
पर मी डरु हैं कि साँप न अपनी चलाकी से हवा ख बहकायो, वसो ही तुमारा मन हुन वा सीधाई अर सुध्दता हुन से जो मसी ख संग होनू चाहिए, असो नी कि भ्रस्ट नी कियो जाहे।
काहेकि हर एक अच्छो वरदान अर हर एक उत्तम दान ऊपर से ही आय, अर उजारो को बाप की तरफ से मिलत हैं जे म नी ते कोई बदलाव हो सकह हैं, अर नी अदला बदला को कारन हो पर छाय पड़ हैं।
पर जे ग्यान ऊपर से आवा हैं उ पहले तो सुध्द होव हैं फिर सान्ति से मिलनसार कोमल अर मृदुभाव अर दया अर अच्छो फल से लदो वालो अर पक्छपात अर मन कपट रहित होव हैं।
तब उ बडो अजगर, एकोमतलब उई पुरानो साँप जो इबलीस अऊर सैतान कहलाय हैं अर पुरी दुनिया ख मारन वालो हैं, जमीन पर गिड़ा दियो गयो, अर ओखा दूत ओको संग गिड़ा दिया गया!
पर तुम थुआतीरा का बाकी अदमी हुन से जित्ता असो ग्यान की बात नी माना अऊर वी बात हुन ख जिनका सैतान की गहरी बात हुन कहाँ हैं। नी जाना, असो कहूँ हैं कि मी तुम पर अऊर बोझ नी डालन को।