12 छठवो स्वर्गदूत न अपनो कटोरा महा नदी फरात पर कुड़ाय दियो, अऊर ओको पानी सूख गयो कि पूर्व दिशा सी आवन वालो राजावों को लायी रस्ता तैयार होय जाये।
दूसरी विपत्ति बीत गयी; पर देखो, तीसरी विपत्ति जल्दी आवन वाली हय।
फिर स्वर्गदूत न मोरो सी कह्यो, “जो पानी तय न देख्यो, जिन पर वेश्या बैठी हय, हि त राष्ट्र, लोग अऊर वंश अऊर भाषाये हंय।
फिर मय न एक अऊर स्वर्गदूत ख जीवतो परमेश्वर की मुहर लियो हुयो पूर्व सी ऊपर को तरफ आवतो देख्यो; ओन उन चारयी स्वर्गदूतों सी जिन्ख धरती अऊर समुन्दर की हानि करन को अधिकार दियो गयो होतो, ऊचो आवाज सी पुकार क कह्यो,
मानो कोयी छठवो स्वर्गदूत सी, जेको जवर तुरही होती, कह्य रह्यो हय, “उन चार स्वर्गदूतों ख जो बड़ी नदी फरात को जवर बन्ध्यो हुयो हंय, खोल दे।”