3 उच शहर म एक विधवा भी रहत होती, जो ओको जवर आय–आय क कहत होती, ‘मोरो न्याय कर क् मोख आरोप लगावन वालो सी बचाव!’
“जब तक तय आरोप लगान वालो को संग रस्ता म हय, ओको सी मेल मीलाप कर लेवो कहीं असो नहीं होय कि आरोप लगान वालो तोख न्यायधीश ख सौंप देयेंन, अऊर न्यायधीश तोख सिपाही ख सौंप देयेंन, अऊर तोख जेलखाना म डाल दियो जाये।
“कोयी शहर म एक सच्चो रहत होतो, जो परमेश्वर सी नहीं डरत होतो अऊर नहीं कोयी आदमी की परवाह करत होतो।
कुछ समय तक त ऊ नहीं मान्यो पर आखरी म अपनो आप म बिचार कर ख कह्यो, ‘जब कि मय परमेश्वर सी नहीं डरू, अऊर नहीं आदमी की कुछ परवाह करू हय,
तब भी या विधवा मोख सतावती रह्य हय, येकोलायी मय ओको न्याय चुकाऊं, कहीं असो नहीं होय कि बार-बार आय क आखिर म मोरी नाक म दम करेंन!’”