यो जगत को जसो मत बनो; पर तुम्हरो मन को नयो पन होय जान सी तुम्हरो चाल-चलन भी बदलतो जाये, जेकोसी तुम परमेश्वर की अच्छी, अऊर भावती, अऊर सिद्ध इच्छा अनुभव सी मालूम करतो रहो।
त का व्यवस्था परमेश्वर की प्रतिज्ञावों को विरोध म हय? कभीच नहीं! कहालीकि यदि असी व्यवस्था दी जाती जो जीवन दे सकती, त सचमुच सच्चायी व्यवस्था को पालन को द्वारा मिलय हय।