इन म हम भी सब को सब पहिले अपनो शरीर की लालसावों म दिन बितात रहत होतो, अऊर शरीर अऊर मन की इच्छाये पूरी करत होतो, अऊर दूसरों लोगों को जसो चाल चलन सीच गुस्सा की सन्तान होतो।
मय यो भी चाहऊ हय कि बाईयां भी अपनो आप ख सभ्यता अऊर नम्रता को संग, सोभायमान कपड़ा सी अपनो आप ख संवारे; नहीं की बाल गूथनो अऊर सोना अऊर मोतियों अऊर बहुमूल्य कपड़ा सी,