इन म हम भी सब को सब पहिले अपनो शरीर की लालसावों म दिन बितात रहत होतो, अऊर शरीर अऊर मन की इच्छाये पूरी करत होतो, अऊर दूसरों लोगों को जसो चाल चलन सीच गुस्सा की सन्तान होतो।
कहालीकि हम भी पहिले नासमझ, अऊर आज्ञा नहीं मानन वालो, अऊर गलत होतो। अऊर कुछ तरह की इच्छावों अऊर सुखविलास को चाहत म होतो, अऊर बैरभाव, अऊर जलन करन म जीवन बितावत होतो, अऊर घृना रखत होतो, अऊर एक दूसरों सी दुश्मनी रखत होतो।
विशेष कर क् उन्ख जो अशुद्ध अभिलाषावों को पीछू शरीर को अनुसार चलतो अऊर प्रभुता ख तुच्छ जानय हंय। हि ढीठ अऊर हठी हंय, अऊर ऊचो पद वालो ख बुरो भलो कहनो सी नहीं डरय, अऊर उनकी निन्दा करय हय।
हि बेकार घमण्ड की बाते कर कर क् अनैतिक को कामों को द्वारा, उन लोगों ख जो भटक्यो हुयो म सी निकलन को सुरूवातच कर रह्यो होतो उन्ख शारीरिक अभिलाषावों म फसाय लेवय हंय।