भगवान के महिमा अउ ओखर सक्ति के कारन मन्दिर धुंवा लग भर जथै अउ कउ तब तक मन्दिर हे परवेस नेहको के सकथै, जब तक सात स्वरगदूत के सात पेरसानी पूर नेहको हुइ जाय।
तब दूसर स्वरगदूत, सोना के धूप लइके आथै अउ बेदी के आगू ठाढ हुइ गइस, उके बोहत धूप दय गय रहै, जेखर लग ऊ उके सगलू पवितर सेबकन के बिनती के संग राजगद्दी के आगू बाले सोना के बेदी हे चढाय।