ओखर मुंह लग अक्ठी बोहत चोंख तलबार निकडिस कि ऊ ओखर लग देस के नास करै, ऊ लोहा के राजदंड लग उनखर राज करही, ऊ सर्वसक्तिमान भगवान के गुस्सा के जलजलाहट के अंगूर कर रस कुन्ड राउंदही।
इहैनिता सुरता कर कि तै कछो लग गिरे हबै अउ मन फिरा अउ उन कामन के कर, जउन पहिले के जसना काम करत रथस। अगर तै मन नेहको फिरइहे, ता मै तोर लिघ्घो आयके तोर चिमनी के ओखर जाघा लग हटाय देहुं।