मसीह मनसेन के हाथ के बनाय हर पवितर जिघा हे, जउन निक्खा पवितर जिघा के अक्ठी चिन्हा रथै, नेहको घुसिस, जेखर दवारा मसीह हमर पल्ला स्वरग हे भगवान के लिघ्घो उपस्थिति हुइ सकै।
तब मै राजगद्दी लग अक्ठी आरो सुनथो, ऊ कथै, “देख अब भगवान के मन्दिर मनसेन के बीच हबै अउ ऊ उनखर बीच घर बनाय के रहे करही, ऊ ओखर चेला हुइहिन अउ खुद भगवान उनखर भगवान होही।
एखर बाद मै देखो कि स्वरग हे अक्ठी दूरा खुले हबै, तब तुरही के आरो के जसना ऊ सब्द, जउन मै पहिले सुने रथो, मोर लग बात करथै, “मोर लिघ्घो इछो उप्पर आ कि मै तोके ऊ सब दिखाहुं, जेखर इन सबके बाद घटै के जरूरी हबै।”
फेर मै सगलू रचना के स्वरग हे, अउ भुंइ हे अउ भुंइ के तरी सगलू जीव के हइ कहत सुनेव, “जउन राजगद्दी हे बइठे हबै अउ गेडरा के स्तुति ईज्जत, महिमा, आसीस, अउ सक्ति हरमेसा रहै।”
इहैनिता ऊ भगवान के राजगद्दी के आगू ठाढ हबै अउ ओखर मन्दिर हे दिन रात ओखर सेबा करत रथै अउ ऊ जउन राजगद्दी हे बइठे हबै, उनही सुरक्छा परदान करही अउ तम्बू जसना तानही।
एखर बाद मै देखो कि मोर आगू अक्ठी बडा भीड के ठाढ देखे रथो, जेखर गिनती कउ नेहको कर सकथै, हइ भीड मसे हर कुर के मनसे, हर भासा के मनसे रथै, उन ऊ राजगद्दी अउ ऊ गेडरा के आगू ठाढ रथै, ऊ चरका खुरथा पइजामा पहिने रथै अउ उन अपन हाथन हे खजूर के डगइल लय हर रथै।