13 एखर अलाबा ऊ आलसी रहै लागथै, अउ घर-घर घूमै करथै, ऊ न केबल आलसी रथै, पय बाकिन के कामन के बिगाडथै, अउ दूसर के बुराई करै हे मजा आथै, अउ ऊ बात बोलथै, जउन उके नेहको बोलै चाही।
उहै घर छो रुके रइहा, अउ ओखर लिघ्घो जउन होही, उहै खइहा पीहा, काखे मजदूर के ओखर मजदूरी मिलै चाही, घर-घर झइ जइहा।
अउ जउन बात तुम्हर लाभ के रहिस, उनही गुठेमै अउ मनसेन के आगू अउ घर-घर सिखामै लग कबहुन नेहको झिझकथै।
इहां तक कि असना टेम आही, कि तुम्हर बीच मसे असना मनसेन ठाढ हुइहिन जउन चेलन के अपन पाछू होमै के बातन के घुमाय फिराय के संदेस करही।
अउ हइ मेर अपन पहली बिस्वास के छांड दय हबै।
असना मनसेन के मुंह बन्द के दे चाही, हइ मनसेन अपन फायदा के निता ऊ सगलू सिखाथै, अउ हइ मेर लग घर के घर बरबाद हुइ जथै।
अक्ठिन मुंह लग आसीस अउ सराप दुनो निकडथै, हे मोर भाई अउ बेहन हइ सही नेहको हबै।
सचेत रइहा कि हत्या, चोरी या गलत काम होय या पराय के कामन हे हाथ डारै के कारन तुम मसे कउ मनसे दुख झइ भोगा।
इहैनिता मोर आमै लग मै ओखर कामन के सुरता देबाहुं जउन ऊ बेकार सब्द लग हमर निदरा करथै, ऊ एतका हे मन नेहको भरथै, ता ऊ अपन भाई के सोगत तक नेहको करथै, अउ न करै बालेन के करै देथै, बलुक उनही मंडली लग बाहिर के देथै।