अउ ओखर लग कथै, हर अक्ठी मनसे पहिले निक्खा अंगूर कर रस देथै अउ जब मनसे पी के टुल्य हुइ जथै, तब फेर घटिया देथै, पय तुम निक्खा अंगूर के रस बचाय के रखे हबस।
इन बेकार कामन के सजा भोगही, उन दिन दुपहरी भोग बिलास करै के पसंद करथै, उन कलंक अउ पापी हबै, अउ तुम्हर संग खात पियत हबै, ता अपन पार लग माया भोज करके एसो आराम करथै।