हर अक्ठी खेल, जउन खेल हे भाग लेथै, उन हर बात हे धीर धरथै, उन नास होय बाले इनाम मुकुट पामै के निता असना करथै, जब कि हम जउन इनाम मुकुट कबहुं नास नेहको होमै बाले हबै ओखर निता करथन।
धन्य हबै ऊ, जउन मनसे परिक्छा हे ठाड रथै काखे परिक्छा हे खरा उतरै हे उके जीवन के ऊ मुकुट मिलही, जेही परभु अपन सेबक के दे के टीमा अपन माया करै बाले लग करे हबै।
तुमही भगवान के जउन झुन्ड सउपे गय हबै, ओखर बरेदी बना, भगवान के इक्छा के जसना उनखर देखरेख करा दबाव हे नेहको, पय अपन इक्छा के जसना, पइसा के लालच के निता नेहको पय सुध्द सेबा भाव लग,
पिरिया अब हम भगवान के लरका हवन, अउ अब हइ परगट नेहको हुइस कि हम का बनब हम एतका जानथन कि जब मसीह परगट होही ता हम ओखर जसना बन जाबे, काखे हम उनही ओसनेन देखबो जसना कि ऊ सहीमा हबै।
तुमके जउन परेसानी भोगै के होही ओखर लग झइ डर, भुतवा तुम्हर परिक्छा लेय के उदेस्य लग तुम्हर मसे कुछ मनसेन के जेल हे डाल देही अउ तुम दस रोज तक परेसानी हे पडे रइहा अउ जब तक तुम्हर मिरतू न आय जाय तब तक बिस्वास ओग हे बने रइहा अउ मै तुमके जीवन के मुकुट परदान करिहों।”