24 काखे सगलू देह चारा मेर, अउ ओखर सोभा पतेरन के फूल के जसना हबै, चारा मुरझाय जथै, फूल झड जथै।
इहैनिता जब भगवान पटउरा के चारा के सजउटी हइ सीमा तक करथै, जेखर जीवन चुटु टेम कर हबै अउ जउन आने रोज आगी हे लेस दय जही, का ऊ तुमही कहुं बोहत सोभायमान नेहको करही? कसना कमजोर हबै तुम्हर बिस्वास।
तुम नेहको जानथा कि कल तुम्हर का हालत होही। तुम्हर जीवन अक्ठी कोहिटा मेर हबा, ऊ अक घरी देखही फेर उजाय जही।
दुनिया अउ ओखर लालच दोनो खतम होथै, पय जउन भगवान के इक्छा पूर करथै ऊ जुग-जुग तक बने रथै।