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यरमियाह 26:2 - इंडियन रिवाइज्ड वर्जन (IRV) उर्दू - 2019

2 कि ख़ुदावन्द यूँ फ़रमाता है कि: तू ख़ुदावन्द के घर के सहन में खड़ा हो, और यहूदाह के सब शहरों के लोगों से जो ख़ुदावन्द के घर में सिज्दा करने को आते हैं, वह सब बातें जिनका मैंने तुझे हुक्म दिया है कि उनसे कहे, कह दे; एक लफ़्ज़ भी कम न कर।

Faic an caibideil Dèan lethbhreac

किताब-ए मुक़द्दस

2 रब ने फ़रमाया, “ऐ यरमियाह, रब के घर के सहन में खड़ा होकर उन तमाम लोगों से मुख़ातिब हो जो रब के घर में सिजदा करने के लिए यहूदाह के दीगर शहरों से आए हैं। उन्हें मेरा पूरा पैग़ाम सुना दे, एक बात भी न छोड़!

Faic an caibideil Dèan lethbhreac




यरमियाह 26:2
32 Iomraidhean Croise  

इसलिए तू अपनी कमर कसकर उठ खड़ा हो, और जो कुछ मैं तुझे फ़रमाऊँ उनसे कह। उनके चेहरों को देखकर न डर, ऐसा न हो कि मैं तुझे उनके सामने शर्मिंदा करूँ।


लेकिन ख़ुदावन्द ने मुझे फ़रमाया, यूँ न कह कि मैं बच्चा हूँ; क्यूँकि जिस किसी के पास मैं तुझे भेजूँगा तू जाएगा, और जो कुछ मैं तुझे फ़रमाऊँगा तू कहेगा।


तब यरमियाह तूफ़त से, जहाँ ख़ुदावन्द ने उसे नबुव्वत करने को भेजा था वापस आया; और ख़ुदावन्द के घर के सहन में खड़ा होकर तमाम लोगों से कहने लगा,


जिस नबी के पास ख़्वाब है, वह ख़्वाब बयान करे; और जिसके पास मेरा कलाम है, वह मेरे कलाम को दियानतदारी से सुनाए। गेहूँ को भूसे से क्या निस्बत? ख़ुदावन्द फ़रमाता है।


जो यरमियाह नबी ने यहूदाह के सब लोगों और येरूशलेम के सब बाशिन्दों को सुनाया, और कहा,


तब यरमियाह नबी ने काहिनों और सब लोगों के सामने, जो ख़ुदावन्द के घर में खड़े थे, हननियाह नबी से कहा,


तब बारूक ने किताब से यरमियाह की बातें, ख़ुदावन्द के घर में जमरियाह — बिन — साफ़न मुन्शी की कोठरी में ऊपर के सहन के बीच, ख़ुदावन्द के घर के नये फाटक के मदख़ल पर सब लोगों के सामने पढ़ सुनाईं।


तब यरमियाह नबी ने उनसे कहा, मैंने सुन लिया, देखो, अब मैं ख़ुदावन्द तुम्हारे ख़ुदा से तुम्हारे कहने के मुताबिक़ दुआ करूँगा; और जो जवाब ख़ुदावन्द तुम को देगा, मैं तुम को सुनाऊँगा। मैं तुम से कुछ न छिपाऊँगा।


तू ख़ुदावन्द के घर के फाटक पर खड़ा हो, और वहाँ इस कलाम का इश्तिहार दे, और कह, ऐ यहूदाह के सब लोगों, जो ख़ुदावन्द की इबादत के लिए इन फाटकों से दाख़िल होते हो, ख़ुदावन्द का कलाम सुनो।


तू ये सब बातें उनसे कहेगा, लेकिन वह तेरी न सुनेंगे; तू उनको बुलाएगा, लेकिन वह तुझे जवाब न देंगे।


फिर उसने मुझ से कहा, कि 'ऐ आदमज़ाद, मेरी सब बातों को जो मैं तुझ से कहूँगा, अपने दिल से कु़बूल कर और अपने कानों से सुन।


फ़िर तू ऐ आदमज़ाद, इसलिए कि मैंने तुझे बनी — इस्राईल का निगहबान मुक़र्रर किया, मेरे मुँह का कलाम सुन रख और मेरी तरफ़ से उनको होशियार कर।


और उस शख़्स ने मुझे कहा, कि 'ऐ आदमज़ाद, अपनी आँखों से देख और कानों से सुन, और जो कुछ मैं तुझे दिखाऊँ उस सब पर ख़ूब ग़ौर कर, क्यूँकि तू इसी लिए यहाँ पहुँचाया गया है कि मैं यह सब कुछ तुझे दिखाऊँ; इसलिए जो कुछ तू देखता है, बनी इस्राईल से बयान कर।


और उन को ये ता'लीम दो, कि उन सब बातों पर अमल करें जिनका मैंने तुम को हुक्म दिया; और देखो, मैं दुनिया के आख़िर तक हमेशा तुम्हारे साथ हूँ।”


और वह रोज़ाना बैत — उल — मुक़द्दस में तालीम देता रहा। लेकिन बैत — उल — मुक़द्दस के रहनुमा इमाम, शरी'अत के आलिम और अवामी रहनुमा उसे क़त्ल करने की कोशिश में थे।


ईसा ने जवाब में कहा, “मैं ने दुनियाँ में खुल कर बात की है। मैं हमेशा यहूदी इबादतख़ानों और हैकल में तालीम देता रहा, वहाँ जहाँ तमाम यहूदी जमा हुआ करते हैं। पोशीदगी में तो मैं ने कुछ नहीं कहा।


दूसरे दिन सुबह सवेरे ही वो फिर हैकल में आया, और सब लोग उसके पास आए और वो बैठकर उन्हें ता'लीम देने लगा।


और जो जो बातें तुम्हारे फ़ाइदे की थीं उनके बयान करने और एलानिया और घर घर सिखाने से कभी न झिझका।


क्यूँकि मैं ख़ुदा की सारी मर्ज़ी तुम से पूरे तौर से बयान करने से न झिझका।


इतने में किसी ने आकर उन्हें ख़बर दी कि देखो, वो आदमी जिन्हें तुम ने क़ैद किया था; हैकल में खड़े लोगों को ता'लीम दे रहे हैं।


और वो हैकल में और घरों में हर रोज़ ता'लीम देने और इस बात की ख़ुशख़बरी सुनाने से कि ईसा ही मसीह है बाज़ न आए।


“जिस जिस बात का मैं हुक्म करता हूँ, तुम एहतियात करके उस पर 'अमल करना और उसमें न तो कुछ बढ़ाना और न उसमें से कुछ घटाना।


बल्कि जिस जगह को ख़ुदावन्द तुम्हारा ख़ुदा तुम्हारे सब क़बीलों में से चुन ले, ताकि वहाँ अपना नाम क़ाईम करे, तुम उसके उसी घर के तालिब होकर वहाँ जाया करना।


जिस बात का मैं तुमको हुक्म देता हूँ, उसमें न तो कुछ बढ़ाना और न कुछ घटाना; ताकि तुम ख़ुदावन्द अपने ख़ुदा के हुक्मों को जो मैं तुमको बताता हूँ मान सको।


चुनाँचे जो कुछ मूसा ने हुक्म दिया था, उस में से एक बात भी ऐसी न थी जिसे यशू'अ ने बनी इस्राईल की सारी जमा'अत, और 'औरतों और बाल बच्चों और उन मुसाफ़िरों के सामने जो उनके साथ मिल कर रहते थे न पढ़ा हो।


और अगर कोई इस नबुव्वत की किताब की बातों में से कुछ निकाल डाले, तो ख़ुदा उस ज़िन्दगी के दरख़्त और मुक़द्दस शहर में से, जिनका इस किताब में ज़िक्र है, उसका हिस्सा निकाल डालेगा।


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