दिब्य दरस 22:5 - गढवली नयो नियम5 अर फिर कभी रात नि होली, अर जु लोग उख रौन्दींनि, ऊं तैं अपड़ा रस्ता मा उज्यलो कनु कु दिवड़ै की कुई जरूरत नि च। न ही ऊं तैं उज्यलो दींण कु सूरज की जरूरत च। किलैकि पिता परमेश्वर ही च जु लुखुं तैं उज्यलो दींद। अर यु लोग जु उख रौदींनि उ हमेशा कु राज्य करदींनि। Faic an caibideilGarhwali5 फिर उख कभि भि रात नि होलि अर ना ही ऊंतैं सूरज या द्यू का उज्याळा की जरुरत होलि, किलैकि प्रभु परमेस्वर खुद ऊंको उज्याळु होलु, अर ऊ हमेसा-हमेसा तक राज करला। Faic an caibideil |
वेका बाद मिल कुछ सिंहासन दिखिनि अर जु लोग ऊं सिंहासनों पर बैठयां छा ऊं तैं राज्य कनु को अधिकार दिये गै छो। मिल ऊं लुखुं की आत्माओं तैं भि देखि, जूंका मुंड तैं काटेले छो किलैकि ऊंल यु अंगीकार कैरी छो कि यीशु ऊंको प्रभु छो, अर उ परमेश्वर का वचन पर विश्वास करदा छा। ऊं लुखुं ल जानवर या वेकी मूर्ति की आराधना नि कैरी छै, ऊंल अपड़ा माथा या हथों पर जानवर की छाप भि नि लगै छै। यु लोग दुबरा ज्यून्दा हवे गैनी अर एक हजार सालों तक मसीह का दगड़ी मिली के राज्य कैरी।