“हे कपट राखबाळो धरमसास्तर्यो अर फरिसीयो! थार प धिक्कार ह। थे लोगा का ईस्बर नगरी राज म जाबाळा गेलानै रोको हो। थे नइ तो खुद बि गेलै जाओ अर नइ लोगानै बि गेलै जाबा द्यो।
बे जंय्यांई नगरी का दरूजा प पुग्याक, जणा देख्या क बठिकी एक अरथी जारी ही, अर बो एक खाली होईड़ी को एकलोतो बेटो हो जि बजेऊँ नगरी का घणकराक बिका दाग म सामिल हा।
अंय्यांई ओ मोट्यारो, थे बी थारी लूगाया क सागै समजदारीऊँ जीवन जीओ। अर लूगायानै थारूँ कम मजबूत अर जीवन का बरदान म थारी पाँतीवाळ मानर बाकी ईज्जत करो। जिऊँ थारी अरदास म कोई आट नइ आवै।