“मूँ थाँने सान्ती देन जारियो हूँ, आपणी खुद की सान्ती थाँने देवूँ हूँ। दनियाँ देवे हे वस्यान मूँ थाँने ने देवूँ हूँ। थाँको मन दकी ने वेवे अन ने थाँ दरपे।
काँके जद्याँ आपाँ परमेसर का दसमण हा। तो परमेसर आपणाँ बेटा की मोतऊँ आपणो मेल-मिलाप खुदऊँ किदो। अन जद्याँ अबे आपणाँ मेल-मिलाप वेग्यो हे तो वाँका जीवनऊँ आपाँ काँ ने बंचाया जावा?
काँके जद्याँ आपाँ मनकाँ का हाव-भाव का जस्यान जीरिया हा, तो आपणी पापऊँ भरी मरजी ज्या नेमाऊँ अई ही, वाँ आपणाँ अंगा में काम करबा लागगी। जणीऊँ आपणो अंत मोत वेवे,
काँके ज्यो आपणाँ सरीर की बुरी मरजी के वाते वाँई, वो सरीर के वाते आपणाँ नास की हाँक काटी, अन ज्यो पुवितर आत्मा के वाते वाँई, वो आत्मा के वाते अनंतकाल का जीवन की हाँक काटी।