38 काँके मूँ पको जाणूँ हूँ के, ने मोत अन ने जीवन, ने हरग-दुत अन ने राज करबावाळी आत्मा, ने अबाणू की कुई चीज अन ने आबावाळा टेम की कुई चीज, ने कुई सगत्याँ,
ईंका केड़े अणी दनियाँ को अंत वेई, मसी हाराई राज करबावाळा राजा ने अन अदिकारियाँ ने अन हारी सगत्याँ ने नास करन आपणो राज परमेसर बापू का हाताँ में हूँप देई।
सास्तर में लिक्यो तको हे के, “में विस्वास किदो हो, जणीऊँ तो मूँ बोल्यो।” आपाँ में भी वणीइस विस्वास की आत्मा हे, जणीऊँ आपाँ भी विस्वास करा हाँ अन बोला हाँ।
काँके वाँकाऊँईस परमेसर हंगळी चिजाँ बणाई पलई हरग की वो कन धरती की, दिकबावाळी कन ने दिकबावाळी, पलई सिंघासन, राज, राजा अन अदिकारी, अन हंगळी चिजाँ वींकाऊँईंस बणी अन वींका वातेईस बणी तकी हे।
अन हाराई बुरा आत्मिक परदानाँ अन बुरी सगत्याँ का हत्यार कोसन हूळीऊँ वाँको हाराई का हामे तमास्यो किदो अन वाँने आपणे पाच्छे कर नाक्या अन जीत को जुलस काड़्यो।
ईं हाराई मनक विस्वास करता कतराई मरग्या अन ज्यो चीज वाँने देबा को वादो किदो ग्यो हो, वाँ वाँने कोनी मली। पण वीं वाँने छेटीऊँ देकी अन वाँकी आवभगत किदी अन वीं ओ भी मानता हा के, वीं ईं धरती में बारवासी अन अणजाण हे।