21 के, यो भी आपणाँ नास वेबाऊँ छुटकारो पान परमेसर की ओलाद की मेमामय आजादी में पांतीदार वे।
मसी ने वीं दाण तईं हरग में रेणो पेड़ी, जतरे वीं हारी बाताँ परमेसर पेल्याँ के जस्यान कोयने कर दे, जिंका बारा में नरई पेल्याँ परमेसर आपणाँ आड़ीऊँ बोलबावाळा पुवितर मनकाँ का मुण्डाऊँ बतायो हो।
काँके ओ जग घणी आसऊँ वीं टेम को वाट नाळरियो हे, जद्याँ परमेसर आपणी ओलाद परगट करी।
ज्याँने वणी पेल्याँईं चुण मेल्या हा, वाँने वणी बलाया अन ज्याँने वणी बलाया वाँने धरमी भी ठेराया हे, अन ज्याँने वणी धरमी ठेराया, वाँने वणी मेमा भी दिदी हे।
ईं वाते जद्याँ मरिया तका पाच्छा जीवता वेई तो भी अस्यान वेई अन जणी देह ने ईं धरती पे गाड़ीगी हे, वाँ नास वेबावाळी हे, पण जणी देह ने मरिया केड़े पाच्छी मेली वाँ अमर हे।
अन या बात, “एक दाण ओरी” ईं बात ने परगट करे हे के, रचना किदी तकी चिजाँ मेंऊँ हालबावाळी चिजाँ नास किदी जाई, जणीऊँ ज्यो चिजाँ हाली कोनी, बेस वींइस अटल रेई।
पण आपाँ तो परमेसर की वादा का जस्यान नुवो आकास अन नवी धरती की वाट नाळा हा, जटे धरमीपणो वास करे हे।
पछे में एक नुवो हरग अन नुवी धरती देकी। काँके पेलो हरग अन पेली धरती खतम वेग्या हा अन समन्द भी अबे ने रियो हो।