वणी आपणाँ बापू ने क्यो के, ‘देको, मूँ अतरा सला वेग्या थाँकी हाँचा मनऊँ सेवा कररियो हूँ अन कदी भी थाँका हुकम ने ने टाळ्यो हे, तद्याँ भी थाँ मने एक बकरी को बच्यो भी ने दिदो हे के, मूँ आपणाँ हण्डाळ्याँ का हाते आणन्द मनातो।
हो मारा भायाँ हुणो, मसी की देहऊँ थाँ भी मूसा का नेमा का वाते मरग्या हो। तो अबे थाँ कणी दूजाऊँ जुड़ सको हो, वणीऊँ जिंने मरिया तकाऊँ पाछो जीवतो किदो हे। जणीऊँ आपाँ परमेसर का वाते फला फूला।
पण अबे आपाँने नेमाऊँ छुटकारो मलग्यो हे। काँके जणा नेमा को आपणाँ पे हक हो, वींका वाते आपाँ मरग्या हा। ताँके पुराणा लिक्या तका नेमाऊँ ने, पण आत्मा की नुवी रितऊँ परमेसर की सेवा करा।
पण ज्यो मनक मूसा का कामाँ का जस्यान चाली वीं हाराई मनक पाप का गुलाम रेई। काँके सास्तर में लिक्यो हे के, “ज्यो कुई मूसा का नेमा की किताब में लिकी तकी हारी बाताँ ने कोयने मानी, वींने हराप लागी।”