20 नेम ईं वाते आया हा के, पाप बड़ सके। पण जटे पाप बड़्यो, वटे परमेसर की करपा वणीऊँ ओरू भी हेली बड़ी।
जद्याँ वीं आया ज्यो घड़ीभर दन रेग्यो हो, वीं दाण दानकी पे लगाया ग्या हाँ, वाँने एक चाँदी को सिक्को मल्यो।
ईं वाते थें जान ईंको अरत सास्तरा में कई हे वींने हमजो, ‘मूँ बली ने छावूँ हूँ, पण दया-भाव छावूँ हूँ।’ मूँ धरमिया कोयने, पण पापी मनकाँ ने बलावा आयो हूँ।”
अणी वाते मूँ थाँराऊँ कूँ हूँ के, ईंका पाप ज्यो नरई हा, माप व्या, काँके अणी घणो परेम किदो हे। पण जणा का थोड़ो माप व्या हे, वीं थोड़ो परेम राके हे।”
चोर कणी दूजाँ काम के वाते ने, पण बेस चोरी करबा, मारबा अन नास करबा ने आवे हे। पण मूँ ईं वाते आयो के, थाँ भरपूर जीवन पा सको।
यद्याँ मूँ ने आतो अन वाँकाऊँ बाताँ ने करतो, तो वीं पापी ने वेता, पण अबे वाँका नके वाँके पापऊँ बचंबा का वाते कई आळको ने हे।
मनक नेमा को पालण ने करे तो परमेसर को गुस्सो भड़के हे, पण जटे नेम ईं ने हे वटे नेमा ने तोड़बा की गूंजाइसई कोयने हे?
तो पछे आपाँ कई केवाँ? कई आपाँ पाप करता रेवा, ताँके परमेसर की दया बड़ती रेवे?
थाँका पे पाप को राज ने वेई, काँके थाँ नेमा का टेके ने जीवो हो, पण परमेसर की दया का टेके जीवो हो।