काँके वणी एक दन ठेरायो हे, वीं आपणाँ थरप्या तकाऊँ वो धरती का हंगळा मनकाँ को हाँचऊँ न्याव केरी, अन वणी मरिया तका मूँ पाछो जीवतो वेन हंगळा मनकाँ में आ बात पाकी कर दिदी हे।
कदी भी अस्यान ने वेवे, यद्याँ हाराई मनक जूटा हे, तो भी परमेसर हाँचा हे। जस्यान सास्तर में लिक्यो तको हे के, “जणीऊँ थूँ थाँरी बाताँ में धरमी वेवे अन न्याव करती टेम में थूँ जे पावे।”