काँके वणी एक दन ठेरायो हे, वीं आपणाँ थरप्या तकाऊँ वो धरती का हंगळा मनकाँ को हाँचऊँ न्याव केरी, अन वणी मरिया तका मूँ पाछो जीवतो वेन हंगळा मनकाँ में आ बात पाकी कर दिदी हे।
ईं वाते हे न्याव करबावाळा पलई थूँ कुई भी वे, थाँरा नके कई आळको ने हे, काँके जणी काम का वाते थूँ किंने दूजाँ ने दोसी माने हे, वणीऊँस थूँ आपणाँ खुद ने भी दोसी केवाड़े हे, काँके जणा कामाँ को थूँ न्याव करे हे वाँने थूँ खुद भी करे हे।
पण थाँ आपणाँ गाटा अन कदी पछतावो ने करबावाळा मन के वजेऊँ परमेसर का गुस्सा ने आपणाँ वाते त्यार कररिया हो। वो गुस्सो थाँरा पे वीं दन पड़ी जदी परमेसर को हाँचो न्याव परगट वेई।
वाँका हाराई फेसला हाँचा अन न्याव करबावाळा हे, काँके वणी वीं वेस्याँ को ज्या धरती का मनकाँ ने कुकरम करवाती अन वाँने वगाड़ती ही वींको न्याव करियो ग्यो हे, अन हातेई हाते आपणाँ दासा का लुई को बदलो लिदो ग्यो हे।”