12 आपणाँ मेंऊँ हाराई जणा ने परमेसर का हामे खुद को लेको देणो पड़ी।
“मूँ थाँकाऊँ कूँ हूँ के, जीं जीं फोगट की बाताँ मनक केवे हे, न्याव का दन वीं हाराई बाताँ को वाँने हस्याब देणो पड़ी।
मनक को पूत आपणाँ हरग-दुत का हाते आपणाँ बाप की मेमा में आई, अन वीं बगत वीं हाराई ने वाँका करमा का जस्यान फळ देई।
ईं वाते वणी मुनीम ने बलान क्यो, ‘या कई बात वेरी हे थाँरा बारा में? ज्या मूँ थाँरा बारा में हुणरियो हूँ। आपणाँ मुनीमपणा को मने हिस्याब दे। काँके आगेऊँ थूँ मुनीम को काम ने कर सके हे।’
काँके आपाँ ईं देह में रेन ज्यो भी भलो-बुरो काम कराँ हाँ, वींको फळ पाबा का वाते आपाँने मसी की न्याव-गादी का हामे जरुर ऊबा वेणो पेड़ी।
काँके हाराई मनकाँ ने आपणोईस बोज तोकणो पड़े हे।
पण वाँने जीं जीवता हे कन मरी ग्या हे हाराई ने आपणाँ-आपणाँ काम को लेको-जोको परमेसर ने देणो पड़ी, जो न्याव करबावाळा हे।