31 वीं बना बदी का, जीबान पलटबावाळा, परेम ने करबावाळा अन एक-दूँजा पे दया ने करबावाळा बणग्या।
ईसू क्यो, “कई थाँ भी आलतरे ने हमज्या हो?
तद्याँ वणी वाँने क्यो “कई, थें भी दूजाँ के जस्यान हमजदार ने हो? कई, थाँ ने हमजो के, कस्यी भी चीज ज्यो मनक में बारणेऊँ मयने जावे, वा वींने ने वटाळे।
कुई हमजदार ने हे, ज्यो परमेसर ने होदे हे!
वाँका हरदा में ने तो परेम-भाव, ने दया-धरम वेई, वीं दूजाँ की बुरई करबावाळा, लड़ई करबावाळा, कल्डा मन का अन भलईऊँ दसमणी राकबावाळा वेई।