अवाज में अस्यान हमच्यार आरियो हो के, “जो कई भी थूँ देकरियो हे, वींने एक किताब का मयने लिकतो जा अन वींके केड़े वींने इपिसुस, स्मुरना, पिरगमुन, थुआतीरा, सरदीस, फिलोदेलफीया अन लिदिकिया की हातई मण्डळ्याँ ने खन्दा दिज्ये।”
वीं मनक धन्न हे जीं परमेसर का ईं दरसावा की किताब का संदेसा ने भणे अन हुणे अन ईंका मयने जो बाताँ लिकी तकी हे, वाँके जस्यान चाले हे। काँके वाँ टेम नके हे, जद्याँ ईं बाताँ पुरी वेई।
“हूँस्यार रेज्यो! काँके मूँ चोर की जस्यान अणाचेत को आऊँ हूँ। धन्न हे वीं ज्यो जागता रेवे हे, अन आपणाँ गाबा हमाळी राके हे, जणीऊँ वीं उगाड़ा ने रेई अन मनक वाँने नांगा ने देकी।”
मूँ यहुन्नो हरेक ने, ज्यो ईं किताब की आगेवाणी की बाताँ लिकी हे वाँके बारे में गवई दूँ के, यद्याँ कुई मनक अणा बाताँ में कई बड़ावे, तो परमेसर वणा विपत्याँ ने ज्यो अणी किताब में लिकी तकी हे, वींपे बड़ाई।
अन यद्याँ परमेसर का आड़ीऊँ बोलबावाळा की अणी किताब में लिक्या तका वसना मेंऊँ कई घटाई तो परमेसर ईं किताब में लिक्या तका जीवन का रूँकड़ा अन पुवितर नगर मेंऊँ वींको हिस्सो वणीऊँ कोसी लेई।
ईं वाते जणी हिक ने थाँ हूणी ही, वींने आद करो अन आपणो मन बदलो अन वीं हिक का जस्यान चाल चालो। जद्याँ थूँ अस्यान ने करी, तो मूँ चोर का जस्यान अणाचेत को थाँरा नके अई जाऊँ अन थने पतो भी ने पड़बा देऊँ।