परमेसर को दन चोर का जस्यान अणाचेत को आई। परबू के पाच्छा आबा का दन आकास जोरऊँ गाजी अन नास वे जाई अन आकास पिंड जो आकास में हे वाँ हेली उनी वेन पिगळ जाई अन ईं धरती पे जो कई भी हे, वो भी बळ जाई।
ज्यो मनक समन्द में मरग्या हा वाँने समन्द दे दिदा अन मोत अन पाताळ में ज्यो मनक हा, वाँने भी वणी दे दिदा। हाराई को न्याव वाँका कामाँ का जस्यान किदो ग्यो।
काँके ज्यो उन्यो गादी का बचमें में हे वो वाँकी रुकाळी करी। अन वो वाँने जीवन देबावाळा पाणी की सोता का नके लेन जाई अन परमेसर वाँकी आक्याँ का हाराई आसूँ पुछ देई।”