ईंपे ईसू वाँने क्यो, “थाँ अस्या लोग-बाग हो, जी मनकाँ का हामे आपणाँ खुद ने धरमी बतावे हे, पण परमेसर थाँका मन ने जाणे हे। मनक जिंने मोटा हमजे हे, वो परमेसर की देकणी में कई ने हे।
जद्याँ थाँ परमेसर ने जो हाराई मनकाँ ने वाँका काम का जस्यान अन जो पकसपात का हाते न्याव ने करे, वींने थाँ “हो बापू” केन बलावो हो, तो थाँ ईं बारवासी धरती पे रेता तका परमेसर ने आदर देता तका जीवन जीवो।
जिंके कान्दड़ा हे वीं हुणीलो के, आत्मा मण्डळ्याऊँ कई केवे हे। ज्यो भी बुरईऊँ जिती मूँ वींने परमेसर का बाग में जीवन का रूँकड़ा का लाग्या तका फळ खाबा को हक देऊँ।
वींके केड़े में फोराऊँ लेन मोटा तईं का हाराई मरिया तका मनकाँ ने वीं गादी का हामे ऊबा तका देक्यो, अन थोड़ीक पोत्याँ खोली गी वणाके केड़े एक ओरी पोती खोली गी, याईस “जीवन की पोती हे।” वाँके करमा का जस्यान ज्या ईं पोती में लिक्या ग्या हा, मरिया तका को न्याव किदो ग्यो हो।
ज्यो मनक समन्द में मरग्या हा वाँने समन्द दे दिदा अन मोत अन पाताळ में ज्यो मनक हा, वाँने भी वणी दे दिदा। हाराई को न्याव वाँका कामाँ का जस्यान किदो ग्यो।
अन में फिका पीळा रंग को घोड़ा देक्यो। ज्यो वींपे सवार हो वींको नाम मोत हो, वींके पाछे-पाछे पाताळ हो वींने धरती का एक चोता भाग पे हक दिदो ग्यो के, वो तरवारऊँ, काळऊँ, मांदकीऊँ अन धरती का जनावराऊँ मनकाँ ने मरावे।