काँके पाप को भेद अबाणू भी काम करतो जारियो हे, पण अबाणू तईं वींने एक रोकबावाळो हे अन ओ ईंने जद्याँ तईं रोक्यो राकी, तद्याँ तईं रोकबावाळो छेटी ने वे जावे।
वणा हात तारा ने जिंने थें मारा जीमणा हात में देक्या हा अन वाँ हात होना का दिवा को भेद ओ हे के, वीं हात तारा हातई मण्डळ्याँ का हात दुताँ ने दिकावे अन वीं हात दिवा हातई मण्डळ्याँ ने दिकावे हे।
वींके केड़े दूज्यो हरग-दुत आन केबा लागो, “वीं मोटा नगर बाबुल को नास वे चुक्यो हे, वींको नास वे चुक्यो हे। अणी नगर हाराई मनकाँ ने आपणाँ कुकरम की वासना को दाकरस पायो हो।”
अन मोटा नगर का तीन टुका वेग्या अन पापी मनकाँ का हाराई नगर नास वेग्या। परमेसर बाबुल नगर ने दण्ड देबा का वाते आद किदो, जणीऊँ वीं वींने आपणाँ गुस्साऊँ भरिया तका दाकरस का प्यालो पावे।
तद्याँ वीं हरग-दुत माराऊँ क्यो, “थूँ अचम्बो में काँ पड़ग्यो? मूँ थने ईं लुगई अन वीं डरावणा जनावर का बारा में जिंका हात माता अन दस हिंगड़ा हे, वींको भेद बताऊँ।
वणी जोरऊँ हेला पाड़न क्यो के, “बाबुल नगर धड़ग्यो, ओ नगर तो धड़ग्यो। ओ नगर हरेक तरियाँ की हुगली आत्मा को, हाराई असुद पकसी को अन काकड़ का बुरा जनावर को अडो बणग्यो हे।
“अणा बाताँ का केड़े में एक जोरावर हरग-दुत ने चक्की का पाट की जस्यान की मोटी छाँट तोकन वींने समन्द पे फेंकते तके क्यो, “यो बाबुल नगर भी, ईं छाँट का जस्यान फेंक दिदो जाई। अन पाछो कदी ने लादी।
वाँका हाराई फेसला हाँचा अन न्याव करबावाळा हे, काँके वणी वीं वेस्याँ को ज्या धरती का मनकाँ ने कुकरम करवाती अन वाँने वगाड़ती ही वींको न्याव करियो ग्यो हे, अन हातेई हाते आपणाँ दासा का लुई को बदलो लिदो ग्यो हे।”