मने आ भी दरपणी लागे हे के, जद्याँ मूँ थाँकाऊँ मलबा आऊँ तो थाँका हामे मारो परमेसर मने हरमा ने मारे। मने वाँका वाते ज्यो पेल्याँ पाप किदो हो जस्यान कुकरम, हूगळोपणो अन भोग-विलास में जीव जियो हो अन आ बाताँ ने करबा का केड़े भी वीं आपणाँ मन ने ने फेरिया, वाँ वाते रोणो ने पड़े।
वो जोरऊँ बोलरियो हो, “परमेसरऊँ दरपो अन वाँकी जे-जेकार करो। काँके वाँके न्याव करबा को टेम आग्यो हे। वींका भजन गावो करो। ज्यो धरती, आकास, समन्द अन पाणी का हीरा ने बणई हे।”
पछे वीं मनक जो वाँकी मारऊँ बचग्या हा, वणा आपणाँ मन ने ने बदल्यो, पण वीं तो हुगली आत्मा, होना, चाँदी, पीतळ, भाटा अन कांस्या की मूरताँ के, जीं ने बोल सके हे, ने देक सके हे, अन ने चाल सके अन ने हुणन सके, वाँके धोक लागणो ने छोड़्यो।