8 चोते हरग-दुत आपणी प्यालो सुरज पे उँन्धई दिदो, काँके सुरज ने मनकाँ ने वादी में बाळबा वाळी तागत दिदी गी ही।
पण तावड़ा का मस कमलाग्या अन जड़ ने जमवाऊँ हुकग्या।
“चाँद-सूरज अन तारा में हेन्याण दिकई दिदा जाई अन धरती में हाराई देसा का लोग-बागाँ पे कळेस आई। काँके वीं समन्द की गाजबाऊँ अन लेराऊँ घबरा जाई।
परबू के पाच्छा आबा के मेमा अन बड़ो दन आबा की बगतऊँ पेल्याँ, सुरज काळो अन चाँद खून जस्यान रातो वे जाई।
अतराक में एक ओरी हरग-दुत जिंने वादी पे अदिकार हो, वो वेदीऊँ निकळयो अन जिंका नके धार दिदी तकी दाँतळी ही वणीऊँ जोरऊँ हेलो पाड़न क्यो, “थाँरी धार लागी तकी दाँतळीऊँ धरती की वेलड़ीऊँ अंगूर का गुच्छा काटी ले, काँके ईंका अंगूर पाक ग्या हे।”
वींके केड़े जद्याँ उन्ये छटी मोर खोली, तो में जोरको भूकम आता देक्यो, जणीऊँ सुरज केलड़ी का पिदा जस्यान काळो अन चाँद लुई की जस्यान रातो वेग्यो।
वाँने ने तो भूक लागी अन नेई वाँने कदी तर लागी। सुरज की तपत अन तावड़ाऊँ भी वाँके कई ने वेई।
जद्याँ चोते हरग-दुत रणभेरी बजई, तो एक तीहाई सुरज, चाँद अन तारा पे विपती आई। ईं वजेऊँ वाँको एक तीहाई भाग काळो पड़ग्यो। जिंका वजेऊँ एक तीहाई दन अन रात में अन्दारो वेग्यो।
अन वणी पाताळ ने खोल्यो, वींके मयनेऊँ भटा का जस्यान धूवो आयो, अन वीं धूवाऊँ सुरज अन आकास काळो पड़ग्यो।