अतराक में एक हरग-दुत मन्दर मयनेऊँ बारणे आयो अन वो वणीऊँ ज्यो वादळा पे बेट्यो तको हो, जोरऊँ हेलो पाड़न क्यो, “दाँतळी चलान हाक भेळी कर, काँके धरती की हाक पाकगी हे अन हाक भेळी करबा की टेम आगी हे।”
ईंका केड़े में हरग में एक ओरी अचम्बो करबावाळो हेन्याण देक्यो, में कई देक्यो के, हात हरग-दुत हे अन वाँके नके हात विपत्याँ ही। काँके ईं आकरी नास के पूरो व्या केड़े परमेसर को गुस्सा को भी अंत वे जाई।