9 वाँ दुई हरग दुताँ के आया केड़े एक ओरी हरग-दुत आयो अन केबा लागो, “जद्याँ कुई ईं डरावणो जनावर अन ईंकी मूरत के धोक लागे अन ईंकी छाप ने आपणाँ माता पे अन हात पे लगावे,
वीं जुग-जुग का वाते वींमें दुक भोगी, अन जी भी वीं डरावणा जनावर अन वींकी मूरत अन वींका नाम की छाप लगावे हे वाँने रात-दन आराम ने मली।”
तद्याँ पेलो हरग-दुत ग्यो अन धरती पे आपणो प्यालो उँन्धई दिदो, जणीऊँ वणा मनकाँ के जणापे वीं डरावणा जनावर की छाप ही, वाँके दक व्यो अन वाँके गुमड़ा वेग्या।
“थाँ जद्याँ तईं धरती, समन्द अन रूँकड़ा को नास मती करज्यो, तद्याँ तईं मूँ आपणाँ परमेसर की मोर वींका दासा का माता पे ने लगई दूँ।”