8 वींके केड़े दूज्यो हरग-दुत आन केबा लागो, “वीं मोटा नगर बाबुल को नास वे चुक्यो हे, वींको नास वे चुक्यो हे। अणी नगर हाराई मनकाँ ने आपणाँ कुकरम की वासना को दाकरस पायो हो।”
अन मोटा नगर का तीन टुका वेग्या अन पापी मनकाँ का हाराई नगर नास वेग्या। परमेसर बाबुल नगर ने दण्ड देबा का वाते आद किदो, जणीऊँ वीं वींने आपणाँ गुस्साऊँ भरिया तका दाकरस का प्यालो पावे।
वाँका हाराई फेसला हाँचा अन न्याव करबावाळा हे, काँके वणी वीं वेस्याँ को ज्या धरती का मनकाँ ने कुकरम करवाती अन वाँने वगाड़ती ही वींको न्याव करियो ग्यो हे, अन हातेई हाते आपणाँ दासा का लुई को बदलो लिदो ग्यो हे।”