काँके मसी हात का बणई तकी पुवितर जगाँ में ने ग्यो, ज्या जगाँ हाँची पुवितर जगाँ की नकल का जस्यान हे, पण हरग में ग्यो हे, ताँके आपणाँ वाते परमेसर का हामें पेरवई वेवे।
तद्याँ में गादी में एक जोरकी अवाज हूणी। वाँ केरी ही के, “देको, अबे परमेसर को मन्दर मनकाँ का वसमें हे अन वीं वाँका वसमें घर बणान रिया करी। वीं वाँकी परजा वेई अन खुद परमेसर वाँका परमेसर वेई।
ईंका केड़े में देक्यो के हरग को बारणो खुल्यो हे अन वाँ अवाज जो मने पेल्याँ हुणई दिदी ही, रणभेरी की अवाज में बोलरी ही के, “ऊपरे अई जा, मूँ थने वीं बाताँ बताऊँ जीं आबावाळा टेम में पकी वेबावाळी हे।”
वींके केड़े में हरग की, धरती की, पाताळ की, अन समन्द की हारी रचना अन बरमाण्ड का हाराई मनक की अवाज हूणी, वीं अस्यान बोलरिया हा के, “ज्यो गादी पे बेट्यो हे वींकी अन उन्याँ की मेमा, मान, अन धन्नेवाद अन वींको राज जुग-जुग रेवे।”
ईं वजेऊँ ईं परमेसर का गादी का हामे ऊबा हे अन वाँके मन्दर में रात-दन वाँकी भगती करता रेवे हे, ईं वाते ज्यो गादी पे बेट्या तका हे वो वाँका में वास करतो तको वाँने बंचाई।
ईंका केड़े में कई देक्यो के, मनकाँ का मोटी भीड़ हे जिंने कुई भी गण ने सके, वीं भीड़ में हारी जात्या का, हाराई कुल का, हारी बोली बोलबावाळा अन हाराई देसा का मनक हा, वीं वणी गादी अन उन्याँ का हामे ऊबा हा, वणा धोळा गाबा पेर मल्या हा अन हाताँ में खजुर की डाळ्याँ ले राकी ही।