1 ईंका केड़े मने नाप लेबा का वाते एक पितो दिदो ग्यो। अन माराऊँ क्यो ग्यो, “ऊबो वेन परमेसर का मन्दर अन वेदी ने नापले। अन जीं मनक मन्दर में जे-जेकार कररिया हे, वाँने गणले।
परबू का मन्दर को मूरत्याऊँ कई वेवार? काँके आपाँ खुदईस जीवता परमेसर का मन्दर हा, जस्यान वणा खुदईस क्यो हो, “मूँ वाँका में वास करिया करूँ, वाँका में चालूँ-फरूँ। मूँ वाँको परमेसर वेऊँ अन वीं मारा मनक वेई।
थाँ भी जीवता भाटा का जस्यान हो थाँने आत्मिक मन्दर का रूप बणाया जारिया हे, जणीऊँ थाँ पुवितर याजक का जस्यान बणन अस्यान का आत्मिक बलीदान चड़ावो, जो ईसू मसी के वजेऊँ परमेसर के चड़ाबा का जोगा वेवे।
पण थाँ तो अस्या मनक कोयने हो, थाँ तो परमेसर का थरप्या तका मनक हो, थाँ रजवाड़ी याजकाँ की टोळी अन पुवितर परवार का हो, परमेसर थाँने अंदारा का राज मेंऊँ अचम्बावाळा उजिता में लाया हे, जणीऊँ थाँ परबू का अचम्बावाळा काम का बारा में बता सको।
ज्यो हरग-दुत माराऊँ बाताँ कररियो हो, वींका नके होनाऊँ एक नापवा की एक जरी बणी तकी हे, जणीऊँ वो वीं नगर ने अन वींकी फाटकाँ अन वींका परकोटा ने नाप सकतो हो।