ईंका केड़े मने नाप लेबा का वाते एक पितो दिदो ग्यो। अन माराऊँ क्यो ग्यो, “ऊबो वेन परमेसर का मन्दर अन वेदी ने नापले। अन जीं मनक मन्दर में जे-जेकार कररिया हे, वाँने गणले।
धरती का हाराई देसा का थोड़ाक मनक, हारी बोली बोलबावाळा मेंऊँ थोड़ाक मनक, हारी गोताँ का थोड़ाक मनक वाँका लास ने हाड़ा तीन दनाँ तईं देकी, वीं वाँकी लास ने कबर में ने मेलबा देई।
ईंका केड़े में एक ओरी हरग-दुत ने आकास का बचमें में ऊसे उड़तो तको देक्यो। वींके नके धरती पे रेबावाळा हाराई मनकाँ का वाते, हाराई देस, हारी बोली बोलबावाळा का वाते अन हाराई कुल का मनकाँ ने हुणाबा का वाते अनंत हव हमच्यार हो।
ईं हात माता हात राजा ने भी बतावे हे, अणा मेंऊँ पाँच को तो नास वे चुक्यो हे, एक अबाणू भी राज करे हे, अन एक आलतरे आयो ने हे। पण जद्याँ वो आई, तद्याँ थोड़ीक टेम वाते रेई।
“जी दस हिंगड़ा थें देक्या हे, वीं भी दस राजा ने दिकावे हे, पण वाँने आलतरे तईं राज-दरबार ने मल्यो। पण वाँने डरावणा जनावर का हाते थोड़ीक टेम का वाते राज करबा को हक दिदो जाई।
वीं एक नुवो गीत गाबा लागा हा के, “थाँ ईं किताब ने अन ईंपे लागी तकी मोराँ ने खोलबा जोगो हो, काँके थाँ बली चड़न थाँका लुईऊँ हाराई कुल का मनकाँ ने, हारी बोली बोलबावाळा ने, हारी जात्या का मनकाँ ने परमेसर वाते मोल लिदो हे।