तद्याँ वाँ जान आपणाँऊँ ओरी हुगली हात आत्माने आपणाँ हाते ले आवे हे, अन वीं वींमें धसने वटे वास करे हे, अन वीं मनक की पाछली दसा पेल्याऊँ भी हुगली वे जावे हे। ईं जुग का हूँगला मनकाँ की दसा भी अस्यानीस वेई।”
ईसू वाँने क्यो, “थाँका कम विस्वास की वजेऊँ। मूँ थाँकाऊँ हाचेई केवूँ हूँ, यद्याँ थाँको विस्वास हरूँ का दाणा का जतरोक भी वेतो, तो ईं मंगराऊँ केता के, ‘अटूऊँ हरकन वटे जातो रे, तो वो जातो रेई।’ कुई बात थाँका वाते अबकी ने वेई।
पण मूँ आपणी देह ने घणी मेनत करान खुद का क्या में राकूँ हूँ, ताँके कटे अस्यान ने वे जावे के, दूजाँ का उपदेस देयाँ केड़े मूँ परमेसर का आड़ीऊँ बेकार मान्यो जाऊँ।
में घणी मेनत किदी हे अन दुक का हाते जीवन जिदो हे। नरी दाण तो मूँ हूँ भी ने सक्यो। अन नरी दाण तो भुको-तरियो भी रियो हूँ, नरी दाण तो ठन्ड में बना गाबा के धूजतो रियो हूँ।