ईंपे ईसू वाँने क्यो, “थाँ अस्या लोग-बाग हो, जी मनकाँ का हामे आपणाँ खुद ने धरमी बतावे हे, पण परमेसर थाँका मन ने जाणे हे। मनक जिंने मोटा हमजे हे, वो परमेसर की देकणी में कई ने हे।
कई, वीं जमीं ने बेंचबाँऊँ पेल्याँ वा थारी कोयने ही? अन जद्याँ वा जमीं थें बेंच दिदी, तो वे रिप्या-कोड़ी थाँरा नके ने हाँ? थें आ बात करबाऊँ पेल्याँ काँ ने होची? थूँ लोगाऊँ ने पण परमेसरऊँ जूट बोल्यो हे।”
काँके जद्याँ आपाँ मनकाँ का हाव-भाव का जस्यान जीरिया हा, तो आपणी पापऊँ भरी मरजी ज्या नेमाऊँ अई ही, वाँ आपणाँ अंगा में काम करबा लागगी। जणीऊँ आपणो अंत मोत वेवे,
काँके मसी ने मानबाऊँ पेल्याँ आपाँ भी बना ग्यान का, केणो ने मानबावाळा, भटक्या तका अन हरेक तरियाँ की मो-माया का गुलाम हाँ। आपणो जीवन बुरई अन मेपणाऊँ भरियो हे। अन आपाँ एक-दूजाऊँ दसमणी राकता हाँ।