48 वे देक्यो के, चेलाऊँ नाव ने आगे डगाणो घणो भारी पड़रियो हे, काँके वइरो वाँके हामे चालरियो हो। तो भाग-फाट्याँ के लगे-भगे वो समन्द पे चालतो तको वाँका नके आयो अन वाँकाऊँ आगे निकलणो छातो हो,
वी दाण नाव समन्द का वच्छा-वच्छ लेराऊँ हिळोळा लेरी ही, काँके हवा हामेंऊँ चालरी ही।
पण ओ जाण लो के, यद्याँ घर का मालिक ने आ खबर वेती के, चोर कणी टेम आई तो जागतो रेतो अन घर में चोरी ने वेबा देतो।
ईं वाते थें भी जागता रो, काँके थाँ ने जाणो हो के मालिक कदी आ जावे। हाँज पड़्या आई कन आदी रात को। कूकड़ो बोलबा की टेम कन दन उगाँ।
अन जद्याँ हाँज वीं, तद्याँ नाव समन्द का गाबे ही अन ईसू एकला जमीं पे हा।
तो वाँ चेला ईसू ने पाणी पे चालता देकन होच्यो के, यो कुई भूत हे। तो वाँ हंगळाईं हाको कर दिदो।
यद्याँ वी रात में दूजाँ पेर कन तीजा पेर में आन वाँने जागता देके, तो वी दास धन्न हे।
अतराक में वीं वणी गाम में पूग ग्या, जटे वीं जारिया हा अन ईसू का ढंगऊँ ओ लागो के, वींके ओर आगे जाणो हे।
परमेसर की ओलाद वेबा का वाते वीं मनक की मरजी का मस देहऊँ ने जनम्याँ, पण वीं तो परमेसर की मरजीऊँ आत्मिक रूप में जनम्याँ।