47 अन जद्याँ हाँज वीं, तद्याँ नाव समन्द का गाबे ही अन ईसू एकला जमीं पे हा।
वो लोगाँ ने खन्दान परातना करबा ने एक मंगरा पे पराग्यो अन हाँज हुदी वो एकलो हो।
वीं वाँने विदा करन परातना करबा वाते मंगरा पे चड़ग्या।
वे देक्यो के, चेलाऊँ नाव ने आगे डगाणो घणो भारी पड़रियो हे, काँके वइरो वाँके हामे चालरियो हो। तो भाग-फाट्याँ के लगे-भगे वो समन्द पे चालतो तको वाँका नके आयो अन वाँकाऊँ आगे निकलणो छातो हो,