“गण्डकड़ा का हामे पुवितर चिजाँ मती फेको अन ने हूँरा का हामे मोती वकेरो। काँके थाँ अस्यान करो तो वीं हूँर मोती ने आपणाँ पगाँ में गूंदी अन गण्डकड़ा पाच्छा फरन थाँकी पीड़ी पकड़ी।
अन ईसू वाँने आग्या दिदी, पछे वीं हुगली आत्मा वीं मनकऊँ निकळन वाँ गडूरा की टोळी में धसगी अन वाँ टोळी, जिंमें दो हजार के, लगे-भगे गडूरा हा, ज्यो मंगरा का ढाळऊँ पड़ता-गुड़ता समन्द में पड़न डुबग्या।