35 ज्यो कुई परमेसर की बाताँ पे चाले, वींइस मारा भई-बेन अन मारी बई हे।”
“ज्यो मने, हो परबू, हो परबू केवे हे वाँका मेंऊँ हाराई हरग का राज में ने जई सकी, पण वोईस जा सकी, ज्यो मारा हरग का बाप की मरजी पे चाले हे।
यद्याँ कुई वींकी मरजी पे चालणो छावे, तो वीं खुद ईं हिकऊँ जाण जाई के, या हिक परमेसर का आड़ीऊँ हे कन मारा आड़ीऊँ हे।
मनकाँ ने खुस करबावाळा के जस्यान दिकाबा का वाते वाँकी सेवा-चाकरी ने करो, पण मसी का दास का जस्यान मनऊँ परमेसर की मरजी पे चालो।
अन थाँने बरदास करणो छावे, ताँके थाँ परमेसर की मरजी ने पुरी करन मोटो फळ पा सको, जिंको परमेसर वादो किदो हो।
पण ज्यो आजादी देबावाळी परमेसर की हिक पे ध्यान लगावे अन चाले हे, वो आपणाँ काम में आसीस पाई, काँके ज्यो वो हुणे हे वींने भूले कोयने अन जस्यान वो हुणे हे वस्यानीस वो करे हे।
ईं वाते थाँ आपणाँ आगे को जीवन मनकाँ की मरजी का जस्यान ने, पण परमेसर की मरजी का जस्यान जीवो।
या दनियाँ अन ईंकी हारी बुरी मरजी को नास वेई, पण ज्यो भी मनक परमेसर की मरजी पे चाले हे, वींको कदी नास ने वेई।