28 “अंजीर का रूँकड़ा की ईं केणीऊँ हिक लेवो। जदी वाँकी डाळयाँ कँवळी वे जावे, अन वींपे कूँपळा फूटबा लागे, तो थें जाण जावो के, उनाळो आबा में हे।
हड़क का आड़ी वणी एक अंजीर को रूँकड़ो देकन वो वींका भड़े ग्यो, तो वींने पान्दड़ा ने छोड़ वींमें ओरू कई ने मल्यो। तो ईसू रूँकड़ा ने क्यो, “अबे थाँरे में कदी कई फळ ने लागी।” अन वो रूँकड़ो तरत हुकग्यो।
पछे वे आपणाँ हरग दुताँ ने खन्दाई अन वीं धरती की च्यारई दिसा मेंऊँ अन बादळा का खुणाऊँ आपणाँ गण्या-चुण्या लोगाँ ने अगेटा केरी।
अस्यानीस थें वे हारी बाताँ वेती देको, तो जाण जाज्यो के, अबे वाँ टेम भडे़ आगी हे, वो बगत चालूँ वेबा मेंईस हे।