42 पछे वटे एक गरीब लुगई जिंको धणी सान्त वेग्यो हो, वा अई अन वणी वींमें दो फोरा ताँबा का सिक्का नाक्या, ज्याँको मोल घणो कम हो।
ज्यो कुई अणा भोळा चेलो मूँ मारो चेला जाणन किंने एक ने भी एक लोट्यो पाणी पाई, मूँ थाँकाऊँ सई कूँ हूँ, वो कणी भी तरियाऊँ आपणो फळ ने खोई।”
मूँ थाँकाणी हाचेई कूँ हूँ के, जद्याँ तईं थूँ कोड़ी-कोड़ी ने भर देई तद्याँ तईं वटेऊँ ने छुट सकी।
ईसू मन्दर की दान-पेटी के हामे बेटन देकरियो हा के, लोग-बाग दान-पेटी में रिप्या कस्यान नाकरिया हे। घणा धनी मनक घणा रिप्या नाक्या।
पछे वे आपणाँ चेला ने बलाया अन वाँने क्यो, “मूँ थाँने हाँची बात केऊँ, सबाका का दानऊँ वाँ लुगई जिंको धणी सान्त वेग्यो, वींको दान हेलो हे।
मूँ थाँकाऊँ हाचेई कूँ हूँ के, जद्याँ तईं थाँ जुरमाना की पई-पई ने दी देवो, वतरे थाँ वटाऊँ छुट ने सको।”
अन वणा एक गरीब विदवा लुगई ने भी वणी में दो फोरा ताँबा का सिक्का नाकती तकी देकी।
काँके जस्यान देबा को मन वेवे हे वस्यानीस वींको दान गरेण किदो जावे हे। मारो केणो हे के, जतरोक वे वतरो दे दिज्यो वणीऊँ बड़न मती देज्यो।
मारा केवा को ओ मतलब हे के, वणा मण्डळ्याँ का मनकाँ ने परक्या ग्या हा, तद्याँ भी वीं राजी हा अन वीं गरीब वेता तका भी वीं देबा का मामला में खुला मनऊँ दिदो।