हड़क का आड़ी वणी एक अंजीर को रूँकड़ो देकन वो वींका भड़े ग्यो, तो वींने पान्दड़ा ने छोड़ वींमें ओरू कई ने मल्यो। तो ईसू रूँकड़ा ने क्यो, “अबे थाँरे में कदी कई फळ ने लागी।” अन वो रूँकड़ो तरत हुकग्यो।
ईसू क्यो, “एक ओरी केणी हुणो। एक जमींदार हो, जणी अंगूरा को एक बाग लगायो, वींके च्यारूँमेर हड़ो किदो, वींमें रस को कुण्ड भी बणायो अन वींमें एक डागळो बणायो अन हिंजारिया ने हिजारे देन परोग्यो।
थोड़ाक छेटी वाँने एक अंजीर को हरियो-भरियो रूँकड़ो नजर आयो। तो वीं फळ पाबा की आस में रूँकड़ा के भड़े ग्या, पण वाँने वटे पान्दड़ाइस दिक्या, काँके अंजीर का फळ लागबा की टेम कोयने ही।
पछे वे यरूसलेम आया अन मन्दर में ग्या, तो ईसू वाँ लोगाँने ज्यो मन्दर में बेंचबा अन लेबावाळा लेण-देण कररिया हा, ईसू वाँने बाणे निकाळबो सरू कर दिदो। तो वे रिप्या को लेण-देण करबावाळा की तकता उळट-पुळट कर दिदा अन परेवड़ा बेंचबावाळा का बाजोट्या उळट-पुळट कर दिदा।
अन जद्याँ ईं मनक छुटकारो देबावाळा परबू ईसू मसी का बारा में जाणबा का केड़े भी अन ईं दनियाँ की बुरई मेंऊँ निकळबा का केड़े पाच्छा वीं बुरई में जावे हे तो वणा मनकाँ के दसा पेलाँ की दसाऊँ भी हेली बुरी वेई।