“गण्डकड़ा का हामे पुवितर चिजाँ मती फेको अन ने हूँरा का हामे मोती वकेरो। काँके थाँ अस्यान करो तो वीं हूँर मोती ने आपणाँ पगाँ में गूंदी अन गण्डकड़ा पाच्छा फरन थाँकी पीड़ी पकड़ी।
ईसू वाँकाऊँ क्यो, “थाँ मारा पे या केवत जरुर केवो, ‘हे वेद पेल्याँ आपणाँ खुद ने साबत कर। अन यो भी केवो के, कफरनहूँम में ज्यो कई किदो हे वींका बारा में माँ हुण्यो हे, वस्योईस आपणाँ नगर में भी कर।’”
जद्याँ थूँ आपणी खुद की मोटी बुरई ने ने देक सके हे तो, आपणाँ भईऊँ कई लेवा केवे के, ‘हे भई ठम, मूँ थाँरी बुरई छेटी करूँ’? अरे कपटी, पेली आपणी बुरई ने छेटी कर, पसे थूँ आपणाँ भई की बुरई सई कर सकी।”