25 “ईं वाते मूँ थाँने केवूँ हूँ के, आपणाँ जीव का वाते यो होच मती करज्यो के, आपाँ कई खावा, कई पिबा, अन ने आपणी देह के वाते के, कई पेरा। कई जीव खाणाऊँ अन देह गाबाऊँ खास कोनी?
जद्याँ वीं थाँने पकड़ी तो थाँ आ चन्ता मती करज्यो के, थाँने कई केणो हे अन कस्यान केणो हे, काँके वीं टेम में थाँने पुवितर आत्मा बता देई के, थाँने कई केणो हे।
ज्यो बीज झाड़क्याँ में वाया ग्या, वीं वणा मनकाँ का जस्यान हे, ज्यो परमेसर का बचन ने हुणे हे, पण ईं दनियाँ की चन्ता अन धन-माया को लोब-लाळच वाँने परमेसर को बचन भुलई दे के, परमेसर वाँकाऊँ कई छावे हे अन वो फळ ने लावे।
अन ज्यो बीज झाड़क्याँ में पड़्या वी वणी मनक का जस्यान हे, जी बचन माने तो हे, पण वीं चन्ता-फिकर अन मो-माया अन जीवन का भोग-विलास में दब जावे हे अन वाँके फळ भी ने पाके हे।
एक सपई जद्याँ आपणाँ काम में लाग्यो तको रेवे हे, तो वो आपणाँऊँ ऊपरे का अदिकारी ने आपणाँ कामऊँ राजी राकणो छावे हे अन ईं वजेऊँ वो खुद ने दनियादारी का कामाँ में ने नाके हे।