34 पण मूँ थाँकाऊँ यो केवूँ हूँ के, कदी होगनई मती खावो, ने हरग की, काँके वटे परमेसर की गाद्दी हे।
“‘परबुजी केवे, हरग मारो आसन अन धरती मारा पगाँ को बाजोट्यो हे। मारा वाते थाँ कस्योक घर बणावो? अन अस्यी कस्यी जगाँ हे जटे मूँ रियाम्बो ले सकूँ?
हो भायाँ, हाराऊँ मोटी बात तो या हे के, थाँ होगन मती खाज्यो, ने तो हरग की अन ने धरती की अन नेई कणी चीज की। पण थाँकी बाताँ हा की हा अन ने की ने वेवे, जणीऊँ थाँने परमेसर को दण्ड ने भोगणो पड़े।