यद्याँ सेतान आपणो खुद को विरोदी वे जावे, तो वींको राज कस्यान बण्यो तको रे सके हे? में यो ईं वाते पूँछ्यो, काँके, थाँ मारा बारा में केवो हो के, यो हुगली आत्मा का हाकम बालजेबूल की मदतऊँ हुगली आत्मा काड़े हे।
थूँ वाँकी आक्याँ ने खोले अन वीं अंदाराऊँ उजिता का आड़ी, अन सेतान की सगतिऊँ परमेसर का आड़ी फरे ताँके वाँने पापाऊँ मापी मले अन परमेसर का चुण्या तका लोगाँ के हाते वीं भी बापोती में भेळा वेवे।’
ईं बात पे पतरस क्यो, “ए हनन्या, सेतान थाँरा मन में आ बात कस्यान ले आयो के, थूँ पुवितर आत्माऊँ जूट बोले अन जगाँ-जमीं का आया रिप्या-कोड़ीऊँ थोड़ाक बंचान आपणाँ नके राक ले।
थाँ एक-दूँजा की देह की मनसा ने पुरी करबा में छेटी मती रेज्यो, पण थोड़ीक टेम तईं परातना का वाते आपस का राजीपाऊँ छेटी रो अन पाच्छा एक हाते वे जावो। कटे अस्यान ने वे के, थाँका खुद ने बंस में राकबा की कमजोरीऊँ सेतान थाँकी परक करे।
मूँ ईं दरसण की वजेऊँ मोटो ने वे जऊँ, ईं वाते मारी देह में एक रोग दिदो ग्यो हे ज्यो सेतान को एक दूत हे अन ओ मने दुक देतो रेवे हे जणीऊँ मूँ घणो मेपणो ने कर सकूँ हूँ।